Wednesday, July 9, 2008

"हरियाणवी ठट्ठे"

नोट- नीचे का भाग "म्हारा हरयाणा " नवम्बर 2007 मैगजीन से लिया गया है जोकि " श्री शमीम शर्मा " जी ने लिखा है। हरियाणा साहित्य अकादमी और शमीम शर्मा जी का धन्यवाद।साथ ही सुशील शर्मा जी का भी धन्यवाद जिनके ब्लाग तलाश से मैँने इन्हें लिया।

एक बर की बात हैं अक ताऊ सुरजा हरियाणा रोडवेज की बस मैं बैठ्या कित जावै था अर बस खचाखच न्यूं भर री थी जाणूं कोठे मैं तूड़ी । ताऊ पिछले दरवाजे की सीढ़िया मैं खड्या होग्या। थोड़ी हाण मैं कंड्क्टर नैं देख्या अक कोय बुड्ढा मोटर कै कती बाहर लटकै है। उसनैं रूक्का मारया - ओ ताऊ माड़ा सा भीतर नैं हो ले। ताऊ किमें नी वोल्या अर न्यूं का न्यूं खड्या रहया। कंड्क्टर नैं थीडी बार मैं फेर रूक्का मारया- आं रैं सुणता कोनीं के ? हो ले नैं भीतर नैं। ताऊ ट्स तैं मस नीं होया। कंडकटर नैं कसूता छोह आग्या तो फेर बोल्या- अरै ओ बूढले मरले भीतर नैं। पड़ ज्यैगा, मर ज्यैगा। या सुण कैं ताऊ कैं चिरमिरी सी उठी अर बोल्या - ओ कसाई । मर ज्यांगा तो तेरी के मां रांड हो ज्यैगी?

एक बर की बात हैं बस मैं पांव टेकण की भी जगहां नही थी। खडी सवारियाँ के धक्के लाग्गैं थे अर इस रेलपेल मैं नत्थू का हाथ धोंरे खडी रामप्यारी कै लाग ग्या। वा अंग्रजी मैं गालियां बकण लाग्गी। नत्थू गुस्सा करता होया बोल्या - घणी राजकुमारी है तो आग्गै नैं सरक ले। रामप्यारी बोल्ली - तुम्हें बोलने की भी तमीज नहीं है? नत्थू दीददे पाड़ते होये बोल्या - के किमें गलत कह दिया, तैं बता दे के कहणा है? राम प्यारी उसतैं समझाते होये बोल्ली - यूं नही कह सकते कि दीदी जरा आगे हो जाओ। थोड़ी बेर मैं फेर धक्का लाग्या तो नत्थू बोल्या - दीदी जरा सी आगे नैं हो ले। एक मोड्डा नत्थू की धोंरे खड्या था। कंडक्टर उसतैं भी बोल्या - अरै ओ जीज्जा तैं भी माड़ा सा आग्गै नैं हो ले।

एक बर की बात है अक नत्थू बस मैं चढ्या पर बैठण की किते जगहां नही मिली । कई देर तो खड्या रहया पर कती बेहाल हो लिया। अचानक देख्या अक एक सीट पै एक लुगाई डेढ़ -दो साल के टाब्बर नैं धोंरे आली सीट पै बिटाकै चैन तैं बैठी थी। नत्थू नै सोच्ची ईब उसनैं जगहां मिल ज्यैगी । वो उस धोंरे जाकै कड़क सी आवाज मैं बोल्या - इस एक बिलात के सौदे नैं गोड्डा मैं गेर ले नैं। इतणा था अर वा लुगाई ताव मैं आगी अर दनदनाती होई बोल्ली - तैं ओड़ बड्डा माणस अर तन्नैं तमीज नहीं है बात करण की भी। एक बिलात के सौदे का के मतलब? धोंरे बैठ्या सुरजा बोल्या - बेब्बे। इसनैं बोल्लण का लक्खण कोनीं, यो अरडू है, बैठ लेण दे अर या तेरी महरौली की लाट मन्नैं पकड़ा दे, मैं ले ल्यूंगा इसनैं अपणे गोड्यां मैं।

एक बर की बात है अक नत्थू नैं बस मैं बैठते ही बीड़ी सुलगा ली अर आराम तैं पीण लाग्या। धोंरे बैठ्या सुरजा बोल्या - भाई क्यूं नास्सां मैं धुआं बगावै है, बंद करदे इसनैं। ताऊ नै टेढी सी नजर करकै न्यू देख्या जाणूं सुण्या ए नहीं। ईब भाई नैं फेर कही - रै इस बीड़ी नैं तलै जा कै फूंक ले। नत्थू बोल्या - भाई तलै उतरण मैं गोड्यां का जोर लगै है, मैं तो पीऊंगा, पीसे लागरे हैं। सुरजा बोल्या- यो देख सामनैं लिख राख्या बीड़ी सिगरेट पीना मना है। नत्थू नैं छोह आग्या अर बोल्या - तूं के तेल का पीप्पा है जो मेरी बीड़ी तैं सुलग ज्यैगा।

जब एक कंडक्टर ने बकाया राशि देते हुए एक गला हुआ सा दस का नोट किसी सवारी को दिया तो सवारी बोली - ये नोट बदल दो। उसकी बात सुनकर कंडक्टर ने ताना - क्यूं इसकी के आंख दुखणी आ री है।

1 comment:

निर्झर'नीर said...

pahle aapko fir shriram sharma ji ko bandhaii is khoobsurat thathe ki