हमें फ़ुरसत नहीं...
अब तो किसी महफिल में जाने की हमें फ़ुरसत नहीं
किसी और से अपना दिल लगाने की हमें फ़ुरसत नहीं
जिस को बसाना था इस दिल मैं ,वो आकर बस गयी है
किसी और को दिल मैं बसाने की हमें फ़ुरसत नहीं
जिस पे सभी जान लुटाते हें,उसको हमने पाया है
किसी और पर अपनी जान लुटाने की हमें फ़ुरसत नहीं
उसके सजदे मैं जब से सर अपना झुका लिया हमने
किसी और के आगे सर झुकाने की हमें फ़ुरसत नहीं
बे-कदर दुनिया ये पूछती है की कौन है वो?
हम यही केहते हें, बताने की अब हमें फ़ुरसत नही...
***Not Mine***
Tuesday, November 13, 2007
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3 comments:
पैरों पर जान लुटाने का माजरा समझ नहीं आया
विस्तार से बतलायेंगे तो जान पायेंगे
क्या कभी इतनी फुरसत पायेंगे ?
होता है न
जब टिप्पणियां मिलती हैं
अच्छी अच्छी
मन भावन
मन चहावन
फूल खिलावन
रंग जमावन
सच है न ?
एक टिप्पणी नीलिमा सुखीजा अरोड़ा पर देना चाह रहा था, नहीं लगी। आप मदद करें, इसे लगाने का प्रयास करें
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
उसके सजदे मैं जब से सर अपना झुका लिया हमने
किसी और के आगे सर झुकाने की हमें फ़ुरसत नहीं
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