"पत्नी बन गया चरणदास"
नोट: यह कहानी नवभारत टाईम्स के पाठक पन्ना से ली गई है।नवभारत टाईम्स और कहानी के लेखक श्री जौली जी का धन्यवाद
चरणदास रोज काम पर जा-जाकर बहुत थक चुका था, उसे लगता था कि उसकी पत्नी तो सारा दिन आराम से घर में बैठी रहती है। पूरे परिवार के लिए सारा काम मुझे अकेले ही करना पड़ता है। सारा दिन मेहनत करके पैसे मैं कमाकर लाता हूं और मेरी बीवी उस पैसे से ऐश करती है। उसने भगवान से प्रार्थना की, कि मेरी पत्नी को एक दिन के लिए आदमी बना दो और मुझे औरत। ताकि मैं भी जिंदगी में एक दिन सुख से जी सकूं। भगवान अच्छे मूड में बैठे थे, उन्होंने झट से चरणदास की प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन दोनों की आत्मा को एक-दूसरे के शरीर में डाल दिया।
अगले दिन सुबह जब चरणदास उठा तो वह औरत बन चुका था। उठते ही बच्चों को स्कूल भेजने की चिंता सताने लगी। फिर उनका नाश्ता और लंच तैयार किया। भाग-भागकर किसी तरह से उनको स्कूल बस तक पहुंचाया। आते समय बाजार से घर के बाकी लोगों के लिए नाश्ते का सामान और सब्जी वगैरहा लेनी थी। घर का कुछ राशन भी खत्म था, वह भी खरीदना जरूरी था।
पति को नाश्ता देकर दफ्तर भेजा, तो वह जाते-जाते बिजली और पानी का बिल जमा करवाने को कह गए। बैंक में बैलंस कम था, इसलिए बैंक में भी कुछ पैसे जमा करवाने का फरमान मिल गया। यह सब कुछ निपटाकर जब तक घर पहुंची तो 1 बज चुका था, अभी घर की साफ-सफाई और कपड़े धुलवाने बाकी थे। रसोईघर भी बुरी तरह से बिखरा पड़ा था। एक कप चाय पीने का मन हुआ तो घड़ी की तरफ नजर गई, छोटे बेटे बंटी का स्कूल से वापस आने का समय हो चुका था। चाय का इरादा छोड़कर उसे लेने बस स्टैंड की ओर भागना पड़ा। रास्ते में ही बंटी ने स्कूल और टीचर की शिकायतें शुरू कर दीं। ढे़र सारा होमवर्क भी बता दिया।
घर आते ही बच्चों के कपड़े बदलकर उनको खाना दिया। फिर दोनों बच्चो में टी.वी.देखने को लेकर झगड़ा हो गया। एक बच्चे के माथे पर चोट लग गई, सब काम छोड़ कर डॉक्टर के पास भागना पड़ा। दिन के 3 बजे चुके थे, सुबह से खाना तो दूर एक कप चाय भी नसीब नही हुई। जैसे-तैसे बच्चे खाना खाकर कुछ देर आराम करने के लिए लेटे, तो पोस्टमैन डाक लेकर आ गया।
अन्दर आकर कुछ पल टी.वी. देखने का मन बनाया ही था, कि दरवाजे पर फिर जोर से घंटी बजी, देखा, एक सेल्सगर्ल कुछ घरेलू सामान बेचने के लिए आई थी। अभी उसे निपटा ही रही थी, कि अंदर से फोन की घंटी फायर बिग्रेड के अलार्म की तरह से बजने लगी। पूरे दिन में 5 मिनट आराम करने का वक्त भी नही मिल सका। अगले दिन के लिए बच्चों की यूनिफॉर्म भी तैयार करनी थी, क्योंकि दोनों बच्चों को फैंसी ड्रेस पहनकर स्कूल जाना था। पति को एक पार्टी में जाना था, उनके कपड़े भी खास तौर से तैयार करने का हुक्म मिला हुआ था। बच्चों और घर के बाकी सभी सदस्यों के लिए डिनर तैयार करना था।
किसी तरह मन मारकर 5 मिनट के लिए पड़ोस में एक सहेली के घर गई, तो उसी समय संदेशा मिला कि घर में कुछ मेहमान आए हैं। सबकुछ छोड़ कर उनकी सेवा शुरू करनी पड़ी। कहने को तो वे एक निमंत्रण पत्र देने आए थे, लेकिन अगर उनका बस चलता तो शायद रात को भी हमारे यहां ही रुकते। रात के 9 बज चुके थे, शरीर थककर चूर हो चुका था। टागों और पीठ में बुरी तरह से दर्द था, लेकिन उधर बच्चे डिनर के लिए शोर मचा रहे थे। पति को पार्टी में जाने की जल्दी हो रही थी। किसी तरह से घर के सारे काम निपटा कर रात को 12 बजे बिस्तर नसीब हुआ, लेकिन अभी तो पतिदेव के पार्टी से वापस आने के इंतजार मे सो नही सकती थी।
रात को दो बजे पतिदेव घर पहुंचे। जैसे-तैसे रात निकली। सुबह होते ही चरणदास भगवान के चरणों में पहुंच गए और रो-रोकर प्रार्थना करने लगे कि मुझे यह सौदा मंजूर नहीं है। भगवान मुझे जल्दी से आदमी बना दो। भगवान फिर से प्रकट हुए और चरणदास की हालत देखकर मंद-मंद मुस्कराने लगे। चरणदास रोते-रोते एक ही प्रार्थना कर रहा था कि हे भगवान मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई, जो मैंने औरतों के बारे में ऐसा सोचा। अब आगे से जिंदगी में यह गलती कभी नही करूंगा। भगवान ने कहा, 'लगता है, तुम्हें अपनी भूल का अच्छी तरह से एहसास हो गया है। इसीलिए तो कहा गया है कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं।