Wednesday, July 23, 2008

पत्नी बन गया चरणदास

 

"पत्नी बन गया चरणदास"

***जौली अँकल***

नोट: यह कहानी नवभारत टाईम्स के पाठक पन्ना से ली गई है।नवभारत टाईम्स और कहानी के लेखक श्री जौली जी का धन्यवाद

चरणदास रोज काम  पर जा-जाकर बहुत थक चुका था, उसे लगता था कि उसकी पत्नी तो सारा दिन आराम से घर में बैठी रहती है। पूरे परिवार के लिए सारा काम मुझे अकेले ही करना पड़ता है। सारा दिन मेहनत करके पैसे मैं कमाकर लाता हूं और मेरी बीवी उस पैसे से ऐश करती है। उसने भगवान से प्रार्थना की, कि मेरी पत्नी को एक दिन के लिए आदमी बना दो और मुझे औरत। ताकि मैं भी जिंदगी में एक दिन सुख से जी सकूं। भगवान अच्छे मूड में बैठे थे, उन्होंने झट से चरणदास की प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन दोनों की आत्मा को एक-दूसरे के शरीर में डाल दिया।

अगले दिन सुबह जब चरणदास उठा तो वह औरत बन चुका था। उठते ही बच्चों को स्कूल भेजने की ​चिंता सताने लगी। फिर उनका नाश्ता और लंच तैयार किया। भाग-भागकर किसी तरह से उनको स्कूल बस तक पहुंचाया। आते समय बाजार से घर के बाकी लोगों के लिए नाश्ते का सामान और सब्जी वगैरहा लेनी थी। घर का कुछ राशन भी खत्म था, वह भी खरीदना जरूरी था।

पति को नाश्ता देकर दफ्तर भेजा, तो वह जाते-जाते बिजली और पानी का बिल जमा करवाने को कह गए। बैंक में बैलंस कम था, इसलिए बैंक में भी कुछ पैसे जमा करवाने का फरमान मिल गया। यह सब कुछ निपटाकर जब तक घर पहुंची तो 1 बज चुका था, अभी घर की साफ-सफाई और कपड़े धुलवाने बाकी थे। रसोईघर भी बुरी तरह से बिखरा पड़ा था। एक कप चाय पीने का मन हुआ तो घड़ी की तरफ नजर गई, छोटे बेटे बंटी का स्कूल से वापस आने का समय हो चुका था। चाय का इरादा छोड़कर उसे लेने बस स्टैंड की ओर भागना पड़ा। रास्ते में ही बंटी ने स्कूल और टीचर की शिकायतें शुरू कर दीं। ढे़र सारा होमवर्क भी बता दिया।

घर आते ही बच्चों के कपड़े बदलकर उनको खाना दिया। फिर दोनों बच्चो में टी.वी.देखने को लेकर झगड़ा हो गया। एक बच्चे के माथे पर चोट लग गई, सब काम छोड़ कर डॉक्टर के पास भागना पड़ा। दिन के 3 बजे चुके थे, सुबह से खाना तो दूर एक कप चाय भी नसीब नही हुई। जैसे-तैसे बच्चे खाना खाकर कुछ देर आराम करने के लिए लेटे, तो पोस्टमैन डाक लेकर आ गया।

अन्दर आकर कुछ पल टी.वी. देखने का मन बनाया ही था, कि दरवाजे पर फिर जोर से घंटी बजी, देखा, एक सेल्सगर्ल कुछ घरेलू सामान बेचने के लिए आई थी। अभी उसे निपटा ही रही थी, कि अंदर से फोन की घंटी फायर बिग्रेड के अलार्म की तरह से बजने लगी। पूरे दिन में 5 मिनट आराम करने का वक्त भी नही मिल सका। अगले दिन के लिए बच्चों की यूनिफॉर्म भी तैयार करनी थी, क्योंकि दोनों बच्चों को फैंसी ड्रेस पहनकर स्कूल जाना था। पति को एक पार्टी में जाना था, उनके कपड़े भी खास तौर से तैयार करने का हुक्म मिला हुआ था। बच्चों और घर के बाकी सभी सदस्यों के लिए डिनर तैयार करना था।

किसी तरह मन मारकर 5 मिनट के लिए पड़ोस में एक सहेली के घर गई, तो उसी समय संदेशा मिला कि घर में कुछ मेहमान आए हैं। सबकुछ छोड़ कर उनकी सेवा शुरू करनी पड़ी। कहने को तो वे एक निमंत्रण पत्र देने आए थे, लेकिन अगर उनका बस चलता तो शायद रात को भी हमारे यहां ही रुकते। रात के 9 बज चुके थे, शरीर थककर चूर हो चुका था। टागों और पीठ में बुरी तरह से दर्द था, लेकिन उधर बच्चे डिनर के लिए शोर मचा रहे थे। पति को पार्टी में जाने की जल्दी हो रही थी। किसी तरह से घर के सारे काम निपटा कर रात को 12 बजे बिस्तर नसीब हुआ, लेकिन अभी तो पतिदेव के पार्टी से वापस आने के इंतजार मे सो नही सकती थी।

रात को दो बजे पतिदेव घर पहुंचे। जैसे-तैसे रात निकली। सुबह होते ही चरणदास भगवान के चरणों में पहुंच गए और रो-रोकर प्रार्थना करने लगे कि मुझे यह सौदा मंजूर नहीं है। भगवान मुझे जल्दी से आदमी बना दो। भगवान फिर से प्रकट हुए और चरणदास की हालत देखकर मंद-मंद मुस्कराने लगे। चरणदास रोते-रोते एक ही प्रार्थना कर रहा था कि हे भगवान मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई, जो मैंने औरतों के बारे में ऐसा सोचा। अब आगे से जिंदगी में यह गलती कभी नही करूंगा। भगवान ने कहा, 'लगता है, तुम्हें अपनी भूल का अच्छी तरह से एहसास हो गया है। इसीलिए तो कहा गया है कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

Wednesday, July 9, 2008

"हरियाणवी ठट्ठे"

नोट- नीचे का भाग "म्हारा हरयाणा " नवम्बर 2007 मैगजीन से लिया गया है जोकि " श्री शमीम शर्मा " जी ने लिखा है। हरियाणा साहित्य अकादमी और शमीम शर्मा जी का धन्यवाद।साथ ही सुशील शर्मा जी का भी धन्यवाद जिनके ब्लाग तलाश से मैँने इन्हें लिया।

एक बर की बात हैं अक ताऊ सुरजा हरियाणा रोडवेज की बस मैं बैठ्या कित जावै था अर बस खचाखच न्यूं भर री थी जाणूं कोठे मैं तूड़ी । ताऊ पिछले दरवाजे की सीढ़िया मैं खड्या होग्या। थोड़ी हाण मैं कंड्क्टर नैं देख्या अक कोय बुड्ढा मोटर कै कती बाहर लटकै है। उसनैं रूक्का मारया - ओ ताऊ माड़ा सा भीतर नैं हो ले। ताऊ किमें नी वोल्या अर न्यूं का न्यूं खड्या रहया। कंड्क्टर नैं थीडी बार मैं फेर रूक्का मारया- आं रैं सुणता कोनीं के ? हो ले नैं भीतर नैं। ताऊ ट्स तैं मस नीं होया। कंडकटर नैं कसूता छोह आग्या तो फेर बोल्या- अरै ओ बूढले मरले भीतर नैं। पड़ ज्यैगा, मर ज्यैगा। या सुण कैं ताऊ कैं चिरमिरी सी उठी अर बोल्या - ओ कसाई । मर ज्यांगा तो तेरी के मां रांड हो ज्यैगी?

एक बर की बात हैं बस मैं पांव टेकण की भी जगहां नही थी। खडी सवारियाँ के धक्के लाग्गैं थे अर इस रेलपेल मैं नत्थू का हाथ धोंरे खडी रामप्यारी कै लाग ग्या। वा अंग्रजी मैं गालियां बकण लाग्गी। नत्थू गुस्सा करता होया बोल्या - घणी राजकुमारी है तो आग्गै नैं सरक ले। रामप्यारी बोल्ली - तुम्हें बोलने की भी तमीज नहीं है? नत्थू दीददे पाड़ते होये बोल्या - के किमें गलत कह दिया, तैं बता दे के कहणा है? राम प्यारी उसतैं समझाते होये बोल्ली - यूं नही कह सकते कि दीदी जरा आगे हो जाओ। थोड़ी बेर मैं फेर धक्का लाग्या तो नत्थू बोल्या - दीदी जरा सी आगे नैं हो ले। एक मोड्डा नत्थू की धोंरे खड्या था। कंडक्टर उसतैं भी बोल्या - अरै ओ जीज्जा तैं भी माड़ा सा आग्गै नैं हो ले।

एक बर की बात है अक नत्थू बस मैं चढ्या पर बैठण की किते जगहां नही मिली । कई देर तो खड्या रहया पर कती बेहाल हो लिया। अचानक देख्या अक एक सीट पै एक लुगाई डेढ़ -दो साल के टाब्बर नैं धोंरे आली सीट पै बिटाकै चैन तैं बैठी थी। नत्थू नै सोच्ची ईब उसनैं जगहां मिल ज्यैगी । वो उस धोंरे जाकै कड़क सी आवाज मैं बोल्या - इस एक बिलात के सौदे नैं गोड्डा मैं गेर ले नैं। इतणा था अर वा लुगाई ताव मैं आगी अर दनदनाती होई बोल्ली - तैं ओड़ बड्डा माणस अर तन्नैं तमीज नहीं है बात करण की भी। एक बिलात के सौदे का के मतलब? धोंरे बैठ्या सुरजा बोल्या - बेब्बे। इसनैं बोल्लण का लक्खण कोनीं, यो अरडू है, बैठ लेण दे अर या तेरी महरौली की लाट मन्नैं पकड़ा दे, मैं ले ल्यूंगा इसनैं अपणे गोड्यां मैं।

एक बर की बात है अक नत्थू नैं बस मैं बैठते ही बीड़ी सुलगा ली अर आराम तैं पीण लाग्या। धोंरे बैठ्या सुरजा बोल्या - भाई क्यूं नास्सां मैं धुआं बगावै है, बंद करदे इसनैं। ताऊ नै टेढी सी नजर करकै न्यू देख्या जाणूं सुण्या ए नहीं। ईब भाई नैं फेर कही - रै इस बीड़ी नैं तलै जा कै फूंक ले। नत्थू बोल्या - भाई तलै उतरण मैं गोड्यां का जोर लगै है, मैं तो पीऊंगा, पीसे लागरे हैं। सुरजा बोल्या- यो देख सामनैं लिख राख्या बीड़ी सिगरेट पीना मना है। नत्थू नैं छोह आग्या अर बोल्या - तूं के तेल का पीप्पा है जो मेरी बीड़ी तैं सुलग ज्यैगा।

जब एक कंडक्टर ने बकाया राशि देते हुए एक गला हुआ सा दस का नोट किसी सवारी को दिया तो सवारी बोली - ये नोट बदल दो। उसकी बात सुनकर कंडक्टर ने ताना - क्यूं इसकी के आंख दुखणी आ री है।

Monday, June 30, 2008

जय बिहार...जय बिहारी

बिहार सिर्फ राज्य नहीं एक तीर्थ धाम है

बुद्ध महावीर सती सीता का वो ग्राम है

मुश्किलों से दो दो हाथ बिहारियों का काम है

चाणक्य चन्द्रगुप्त भी बिहारियों के नाम है

और घाटे वाली रेलगाडी दे रही मुनाफा अब

क्योंकि वहाँ भी बिहार वाले लालू की लगाम है

अरे एक एक बिहारी यहाँ सैकडों पे भारी है

ऐसे वीर बिहारियों को सौ सौ प्रणाम है.

Monday, February 4, 2008

"स्नेह निमंत्रण"

"स्नेह निमंत्रण"





माँ दारू देवी की असीम अनुकंपा से पूरे नशे मे टुन्न होकर हुक्के और पोस्त के सनिध्य मैं हमे आज हर्षित होने का अवसर मिला है क्योंकि हमारी बिगड़ी औलाद ..........

चिरंजीव दुली चंद डांगी [NFT]
कूपत्र श्री MAALBORO

तथा

सौ. बीडीकुमारी [DETAINED]
कुपुत्र्ी श्री GOLD FLAKE ...

विवाह बंधन मे बँधने जा रहे है . आप सभी से अनुरोध है की इस पवन अवसर पर पधारे और भरपूर उत्पात मचाकर अपनी उपस्थिति को सार्थक बनाएँ बारात ब्यावरा की "देसी दारू की भट्टी" से निकलकर निकटवर्ती "अँग्रेज़ी शराब की दुकान" की ओर रात 1 बजे के बाद प्रस्थान करेगी ........

चुन्नु-मुन्नू :-- मेरे PAPAA की शादी में ज़लूल-ज़लूल आना...........

स्वागतोत्सुक
WILLS, ULTRA MILD ROYAL STAG, GREEN LABLE,

दर्शनाभिलाशी
OLD MONG, MASTERSTROCK, MACDOWEEL

विनीत
भांग ,कच्ची ,माल ,थिनर

Sunday, January 13, 2008

"छींटाकशी"

"छींटाकशी"

***पवन चन्दन***

http://www.chokhat.blogspot.com

केला-व-नींबू की नोकझोक

केला उवाच


रूप सलोना है तू गेंद सा खिलौना है
फिर भी तुझे आदमी के हाथों कत्ल होना है
बीच से वो काटता है जीभ से भी चाटता है
इतना निचोड़ता है बूँद नहीं छोड़ता है
आदमी क्रूर है रहम नहीं खाता है
दर्दनाक अंत तेरा मुझे नहीं भाता है

नींबू उवाच


अपनी नहीं सोचता है कैसा तू जनाब है
मुझ से तो गत ज्यादा तेरी ही ख़राब है
ख़राब सी ख़राब है कहा नहीं जाता है
पूछो मत प्यारेलाल देखा नहीं जाता है
मेरी मौत शान से और तेरी अपमान से
द्रोपदी सा हाल होता तेरा इन्सान से


***पवन चन्दन***